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मस्त फगुआ आ गया

रंग फिर से याद आये
मस्त फगुआ आ गया

खिलखिलाते उपवनों में
जिंदगी के ढँग
चूमती पुरवैया ये
अलसा रहे हैं अंग

शीत भी तंबू हटाता
प्यार से सहला गया

जिन क्षणों की कामना में
कट रहे हैं दिन
पास वे आते लगे फिर
पास आये बिन

ढोल सपनों ने बजाया
तो हृदय हर्षा गया

होलिका संग जल मरें
सब त्रास जन-जन के
प्रेम की बरसें फुहारें
भावना बनके

कह सके हर कोई हँसकर
पर्व उनको भा गया

- कुमार गौरव अजीतेन्दु
१५ मार्च २०१६

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