अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

अदृश्य रंग

अदृश्य आये रंग
जिन्दगी के संग
खिले रंग कचनार के
गेंदा और गुलाब के
ट्यूलिप तुम-सा अच्छा है
अर्पित फूलों का गुच्छा है

तुमसे कह दें हम रंगों की बानगी
डाली डाली पर छटा फूल सतरंगी
लाल गुलाबी पीले बैंगनी नारंगी
हरी धरती बिछौना
ओढना नीला गगन
प्राण जिस भी छटा में
सप्तरंगी हो सकें
जिन्दगी चलती रहे
मौत ययावर हो सके

अदृश्य रंग जिंदगी के
जीवन के साथ मिलें ऐसे
फिर कहीं जा न सकें

- सरला धस्माना बैन्डाले
१५ मार्च २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter