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रंग- छह कविताएँ

एक (लाल)

यह दाड़िम के फूल का रंग है
दाड़िम के फल-सा पककर
फूट रहा है जिसका मन
यह उस स्त्री के प्रसन्‍न मन का रंग है
यह रंग पान से रचे दोस्‍त के होंठों की
मुस्‍कुराहट का है
यह रंग है खूब रोई बहन की आँखों का
यह रंग राजा टिड्डे का है
जिसकी पूँछ में बँधे हैं
बच्‍चों के धागे और संदेश
यह रंग रानी तितली का है
जिसे एक बच्‍ची लिये जा रही है घर
यह रंग उस प का है
जो टेसुओं के नाम से जाना जाता है
और जिसके सुलगते ही
वसन्‍त आ जाता है
दरअसल यह उस आकाश-गंगा का रंग है
जिसे धारण करती है माँ अपनी माँग में
जिसके डर से हजारों कोस
दूर खड़ा रहता है काल
और माँ रहती है सदा-सुहागिन।

दो (नीला)

शताब्दियों से यह हमारे
आसमान का रंग है
और हमारी नदियों का मन
थरथराता है इसी रंग में
इसी रंग में डूबे हैं
अलसी के सहस्र फूल
यह रंग है उस स्‍याही का
जो फैली है बच्‍चों की
उँगलियों और कमीजों पर
यह रंग है माँ की साड़ी की किनार का
दोस्‍त के अंतर्देशीय का
यही रंग है बरसों बाद
यह रंग है तुम्‍हारी पसंद
तुम्‍हारे मन और सपनों के
बहुत निकट यह रंग है
और उस दिन भी ठीक यही
रंग होगा आसमान का
इन्‍तजार की दुर्गम घाटियों को
पार करने के बाद जिस दिन
तुमसे मिलूँगा
इस रंग से जुड़ी हैं
प्रिय और अप्रिय यादें
अक्‍सर मेरी नींद में टपकता है नीला रक्‍त
और चौंककर उठ जाता हूँ मैं
यही, हाँ, यही रंग भाई की देह का
मृत्‍यु से पहले
और सर्प दंश के बाद
मैं इसे भूल नहीं सकता
कि यह रंग है समय की पीठ पर।

तीन (पीला)

इस रंग के बारे में
कोई भी कथन इस वक़्त
कितना दुस्‍साहसिक काम है
जब जी रहे हैं इस रंग को
गेंदे के इतने और इतने सारे फूल
जब हँस रहे हों
पृथ्‍वी पर अजस्र फूल
सरसों और सूरजमुखी के
सूर्य भी जब चमक रहा हो
ठीक इसी रंग में
और यही रंग जब गिर रहा हो
सारी दुनिया की देह पर
यह रंग हल्‍दी की उस गाँठ का है
जो सिल पर लोढ़े के ठीक नीचे
पिसी जाने के इंतजार में है
यह एक बहुत नाजुक रंग है
जिससे रँगी है
लड़कियों की चुन्‍नी और नींद
सुनो! मुझे खुशी है कि मैं इस रंग से
चीजों को जुदा करने की
साजिश में शामिल नहीं हूँ।

चार (सफ़ेद)

दुनिया की सबसे पहली स्त्री के
स्‍तनों से बहकर जो अमर हो गया
वही रंग है यह
यों यह आपको काँस और
दूधमोगरों के फूलों में भी मिल जाएगा
जब‍ स्त्रियों के पास
बचता नहीं कोई दूसरा रंग
वे इसी रंग के सहारे काट देती हैं
अपना सारा जीवन
यह रंग उन बगुलों का भी है
जो नगरों के आसमान से
कभी-कभी तफरीह के लिए आते हैं
और बीट करते हैं गाँव-बस्तियों के पेड़ों पर
मैं इस रंग से पूछूँगा उस हंस के बारे में
जो मोती चुगता है
और जानता है मानसरोवर का पता
यह रंग जब दीवारों से रूठ जाता है
लगभग निश्चित हो जाती है
उनके गिरने की तारीख
जब टूट चुके तारों के शोक में
घर लौटते हैं हम
हमारे सामने एक साफ़ कागज में
मुस्‍कुराता है यह रंग
हमें आमंत्रित करता हुआ।

पाँच (काला)

इस रंग से लिपटकर अभी सोये हैं
धरती के भीतर
कपास और सीताफल के बीज
दिया-बाती के बाद
इसी रंग को सौंप देते हैं हम
अपने दिन भर की थकान
और उधार ले लेते हैं ज़रा-सी नींद
यह रंग दोने में भरे उन जामुनों का है
जो बाजार में बिककर
न जाने कितने घरों के लिए
नोन-तेल-लकड़ी में बदल जाएँगे
यह रंग तुम्‍हारे बालों के मुलायम समुद्र का है
जो संगीत और सुगन्‍ध से भरा है
और जहाँ मैं सिर से पाँव तक डूब गया हूँ
यह भादों की उन घटाओं का रंग है
जिन्‍हें छुपाए रखती है माँ अपनी पलकों में
और डूबने से बचा रहता है घर
कितनी चीख़ें, हत्‍याएँ और रक्‍त लिए
आ धमकता है यह रंग
सूरज के डूबते ही
और एक दिये के सामने
पराजित रहता है रात भर।

छह (हरा)

साइबेरिया की घास हो
या अफ्रीका के जंगल
या पहाड़ हों सतपुड़ा-विंध्‍य के
दुनिया भर की वनस्‍पति का
एक नाम है यह रंग
इस रंग का होना
इस विश्‍वास का होना है
कि जब तक यह है
दुनिया हरी-भरी है
यह रंग जंगली तोतों के
उस झुण्‍ड का है
जो मीठे फलों पर
छोड़ जाता है निशान
यही रंग है जो पोखर के
जल में रहता है
और हमसे कभी नहीं छीनता
हमारी कमीज का रंग
एक दिन कार्तिक में जब
किसान पहुँचता है खेत
धान में लहराता है
आखिरी बार यह रंग
और किसान की तरफ
देखकर मुस्‍कुराता है
विदा की आखिरी मुस्‍कान
और दोनों हाथ जोड़ देता है-
अच्‍छा! शायद अगले आषाढ़ में
यह रंग जब रक्‍त में
शामिल हो जाता है
आदमी आखिरी साँस तक
सहता है यातना
और उफ तक नहीं करता
मैं इस रंग को
अपने रक्‍त से दूर रखना चाहता हूँ।

- एकांत श्रीवास्तव
१५ मार्च २०१६

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