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फागुन आया

कुसुम शरों
पर आया फागुन
उर के पट अब खोल रहा है।
साँसों में रस घोल रहा है।

नव पल्लव, नव राग चतुर्दिग
नया कर्म विश्वास
पाने को है लक्ष्य निराकृत
पथ कण्टक सायास

मलयानिल
की अविरल धारा
नवजीवन रस घोल रहा है।

पवन मदिर है गँध घोलकर
पपिहा गाये पी बोलकर
नवपल्लव की हरित प्रभा सँग
उलसित हो कर के पलाश भी
रँग लाल में डोल रहा है।

धूप चुभ रही आँचल उड़ता
कई दिनों के बाद
आम्रकुँज में घूम रही है
कोयलिया आजाद

मन के
भीतर कोना कोना
नव उमँग को
प्रेम माधुरी से छितराकर
कसी ग्रँथियाँ खोल रहा है ।

- सुरेश पंडा
२ मार्च २०१५

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