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फागुन की धूप

प्रिय फागुन की धूप
कबीरा गाती सी

अलसाई सी
उठी अनमनी झुँझलाती
बिखरी अलकें
निखरी पलकें शरमाती
पवन छेड़ता आँख दिखाती
धमकाती

चुप फागुन की धूप
लिख रही पाती सी

बरसाने की
गैल जा रही राधा सी
गोकुल ठाँड़ी
सुगढ़ सलौनी बाधा सी
यमुना तीरे रास रचाती
बलखाती

छिप फागुन की धूप
आ रही जाती सी

- संजीव सलिल
२ मार्च २०१५

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