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फागुन के आगोश में

होली की हुड़दंग में, बैठ सृजन के संग ।
फागुन बिखराने लगा, होली वाले रंग ।।

होली की हुड़दंग में, रंग, अबीर, गुलाल ।
मुख पर छा इठला रहे, करने लगे धमाल ।।

होली की हुड़दंग में, मन भायी जब भंग ।
बासंती होने लगा, जीवन का हर रंग ।।

होली की हुड़दंग में, गाया जब से फाग ।
तन मन से झरने लगी, टेसू वाली आग ।।

होली की हुड़दंग में, कच्चे पक्के रंग ।
मर्यादा को तोड़ कर, कर देते है संग ।।

होली के हुड़दंग में, मांदल वाली थाप ।
कदमों में थिरकन भरे, दे यौवन को ताप ।।

होली की हुड़दंग में, शहर हुए तब्दील ।
गाँवों पर रंगत चढ़ी, हुई गुलाबी झील ।।

होली की हुड़दंग में, ऐसा हुआ कमाल ।
कहते थे सुंदर जिसे, है वे सुंदरलाल ।।

होली की हुड़दंग में, सभी हुए है भांड ।
भेद भाव को भूल कर, बाँट रहे है खांड ।।

होली की हुड़दंग में, मत कर खोटी बात ।
प्रेम रंग में डूबकर, बाँट सृजन सौगात।।

होली की हुड़दंग में, संज्ञा हुई अनाम ।
सर्वनाम के साथ लग, है उपमा बदनाम ।।

होली की हुड़दंग में, है थिगड़े पैबंद ।
लेकिन होते सृजन यहीं, मुस्कानों के छंद।।

- संदीप सृजन
२ मार्च २०१५

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