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होली का त्यौहार |
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आया फागुन मास में, होली का
त्यौहार
बौराया है आम भी, फूला है कचनार
फूला है कचनार, फिजा में छाई मस्ती
बजा-बजाकर ढोल, नाचती सारी बस्ती
कह यादव कविराय, खुदा की देखो माया
करने सबको मस्त, मास फिर फागुन आया
होली देती है सदा, सुंदर इक सन्देश
सभी बराबर हैं यहाँ, राजा या दरवेश
राजा या दरवेश, शेष पहचान न रहती
मत करना अभिमान, होलिका जलकर कहती
कह यादव कविराय, छोड़ दो कड़वी बोली
राग द्वेष सब भूल, प्यार से खेलो होली
होता है हर हाल में, अहंकार का अंत
होली का सन्देश है, सदा जीतते संत
सदा जीतते संत, आग भी जला न पाती
जो भी करता पाप, उसे ही मौत बुलाती
कह यादव कविराय, दुष्ट जीवन भर रोता
रहे सदा बेख़ौफ़, भक्त जो सच्चा होता
टेसू ऐसे खिल गया, जैसे दहके आग
खेल रहे हैं प्यार से, मिल जुलकर सब फाग
मिल जुलकर सब फाग, यही है रीत पुरानी
बुढ़ियाँ भी हैं मस्त, चढ़ी है खूब जवानी
कह यादव कविराय, नाग से हिलते गेसू
दहक़ रहे हैं गाल, दहकता जैसे टेसू
फागुन लेकर आ गया, मस्ती का त्यौहार
सभी ओर होने लगी, रंगों की बौछार
रंगों की बौछार, भीगते हैं नर-नारी
सूरत है बदरंग, मगर लगती है प्यारी
कह यादव कविराय, छुप गए सारे अवगुन
भरता है उल्लास, मचलता जब भी फागुनगोली
खाकर भंग की, मचा रहे हुडदंग
कीचड़ लगे उछलने, नहीं पास में रंग
नहीं पास में रंग, गालियाँ देते फिरते
कभी लगाते दौड़, कभी नाली में गिरते
हम सबका है फ़र्ज़, मनाएँ मिलकर होली
बढ़ा न पाए वैर, भंग की मीठी गोली
- रघुविन्द्र यादव
२ मार्च २०१५ |
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