अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

होली का आना

होली का आना
रंग की बौछार लिए
टेसू पलाश हो जाना
गुलाल रंग मुख रंगें, अबीर फैल रहा आसमानों में
कुछ गुफ्तगू कुछ सुगबुगाहट सी भी है चमन में

होली का आना
पायल खनकाती फिरे मेरी बहना
गाँव खेत मंजीरे, खड़ताल बज रहे
गुझिया और पकवान, घुट रही भाँग है
गलियाँ रंगी बैंगनी लाल पीली, रंग अमन का बेमिसाल है

होली का आना
तो मिलन का बहाना है
गोकुल में, फाग संग ग्वालों का हुड़दंग है
रेशमी चुनरियों में, ढाई आखर प्रसंग है
टेसू रंग की प्रीत जगी, उधौ देख दंग है
गोपियों संग रास खेले, कृष्ण प्रेम मलंग है

होली का आना
प्रेम प्रीत का मन्त्र दुनिया में फैलाना
कोयल का संग आम्र वृक्ष पर मीठे राग सुनाना
होली का मौसम आये तो, नफरत छोड़ विश्व बंधुत्व में रंग जाना

- मंजुल भटनागर
२ मार्च २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter