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रंग गुलाल के

रंग गुलाल के
और फाग के बोल सुहाने
बुनें इन्हीं से संवत्सर के ताने-बाने

ऋतु-प्रसंग यह मंगलमय हो
हर प्रकार से
दूर रहें दुख-दर्द-दलिद्दर
सदा द्वार से

कभी किसी को
कष्ट न दें जाने-अनजाने

अग्नि-पर्व यह
रंगपर्व यह सच्चा होवे
पाप-ताप सब
मन के-साँसों के यह धोवे

हमें न व्यापें
कभी स्वार्थ के कोई बहाने

यह मौसम है
राग-द्वेष के परे नेह का
हाँ, विदेह होने का
है यह पर्व देह का

साँस हमारी
इस असली सुख को पहचाने

- कुमार रवीन्द्र
२ मार्च २०१५

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