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फागुन के आगोश में

फागुन की आगोश में, गदगद हुआ शरीर।
उड़ा ले गई धुंध जब, बहती सरल समीर।।

निपट अनाडी रात ने, मुँह फेरा हरबार।
जब-जब की है चाँद ने, रंगों की बौछार।।

गोरी के चंचल नयन, खोजें मन का चैन।
अधमुंदी पलकें लिए, फागुन की हर रैन।।

दामन में रह जायगी, इस फागुन की याद।
गुन्जेंगे हर रंग के, कानों में संवाद।।

फागुन ने हौले लिखा, आँचल पर हर हाल।
इसी बहाने बुन दिया, चुम्बन का इक जाल।।

बस्ती-बस्ती गा रही, बंजारों सा गीत।
फागुन की बहकी हवा, लेकर मन में प्रीत।।

लाया है फागुन पुनः सारे देसी रंग।
ढपली चिमटा ढोलकी, ताल मँजीरा चंग।।

- अशोक कुमार रक्ताले
२ मार्च २०१५

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