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होली है!!
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होली खेलन मैं चली |
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होली खेलन मैं चली, संग चले
ऋतुराज
नैना मूँदे नींद से, सखियाँ समझें लाज।
चन्दन वन सा मन हुआ, केसर भीगे अंग
ओढ़ी जब से ओढ़नी, इन्द्रधनुष के रंग।
छलकी गगरी रंग की, भीगी चुनरी पीत
बरजोरी से हाथ में, किसने लिख दी प्रीत।
रंगों के उपहार ले, आया फागुन मास
मालिन की डलिया भरी, माली सोहे हास।
अधरों पे सजने लगे, चैती-होरी राग
सजी पैंजनी पाँव में, जागे बिछुआ भाग।
खनखन छनकें चूड़ियाँ, छमछम बाजूबंद
लिखे लेखनी आज फिर,प्रीत डुबोये छंद।
प्रेम रंग मधुमास का, छिड़के आज अनंग
बौराई धरती उड़े, डोरी बिना पतंग ।
रोम-रोम पुलकित हुआ, मुखड़ा हुआ अबीर
कोकिल पी का नाम ले, नैना हुए अधीर।
बरसाने की छोरियाँ, कैसा करें धमाल
मथुरा-गोकुल गाँव का, हाल हुआ बेहाल।
पिचकारी ने छिटक दी, मादकता चहुँ ओर
फाग सुनाए मोरनी, नाचे झूमे मोर।।
शशि पाधा
१७ मार्च २०१४ |
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