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होली है!!


गालों चढ़ा पलाश


पैरों में महुआ आ लिपटा
गालों चढ़ा पलाश
अजब है फागुन का भुजपाश

बूढ़े बाबा की आँखों में
लहका बचपन
दुखते पाँवों में पँछी बन
चहका बचपन

पिचकारी ले दौड़ रहे हैं
भूले हर इक "काश"

नज़रों में नज़रों की पाती
बहक रही है
प्रीति बनी टेसू की बगिया
महक रही है

संयम मर्यादा के सारे
मंतर हुए हताश

माथे की शिकनो पर
रंगों के पहरे हैं
जलते प्रश्नों पर भीगे कुछ
पल ठहरे हैं

दुखते मन की हर कराह को
आज मिला अवकाश

-सीमा अग्रवाल
१७ मार्च २०१४

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