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होली है!!
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होली पर |
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आजकल के त्यौहार
वह उल्लास कहाँ है...
बीस पचीस साल पहले था जो
वर्तमान में
अधिकांश पर्व उपेक्षित
मोबाइल जिंदगी
सिमटी चन्द शब्दों तक
हर एक मौका छीन लिया
इसने हमारे हाथों से,
मिलने-मिलाने का समय
न जाने कहाँ चला गया है
जी रहे हैं हम सब
एक औपचारिक जिंदगी
चुपचाप अपने में लस्त हैं
विभिन्न परेशानियों से त्रस्त हैं
अब किसी की कलम त्योहारों पर
क्यों नहीं उठ रही
कहने को आज बड़े मस्त हैं
हाँ मगर लिखी जा रही हैं
बनावटी लेख और कुछ कवितायेँ
मानो समाज के मुंह पर
किसी ने रंग मिला हुआ
कीचड़ पोत दिया है...
होली तो होली है
हर साल आती है
होली ही क्या
सभी पर्व आते हैं हर बरस
और हम हर साल
एक कदम आगे बढ़ जाते हैं
ज्यादा समय नहीं बीता है
हमें सोचना होगा !
थोड़ा मुड़कर पीछे देखना ही होगा
जो हुआ उसे भूल जाएँ
आओ, सबकी खैरसल्लाह लें
रंगों में डूबकर
मस्ती से सराबोर हो जाएँ
हम अभी इंसान ही हैं
समाज में अभी भी रह रहे हैं हम सब
सुबह का भूला अगर
शाम को घर आ जाये
तो उसे भूला नहीं कहते;
रंगोत्सव होली...
हमारी प्यारी होली
चलो न थोड़ी ख़ुशी बाटें
मतभेदों को तोड़ दें
बनावटीपन छोड़ दें
मनुष्यता के रंग में सब एक रंग हो जाएँ
आओ, होलिकोत्सव मनाएँ !!
-राहुल देव
१७ मार्च २०१४ |
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