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होली है!!


पलाश का एक फूल


याद है मुझे
वर्षों पहले दौरे से लौटते हुए
पिता के हाथ में
जंगल की गोद से समेटे पलाश के ढेरों फूल
उनके रंगों से रंगा पूरा पड़ौस
दीवारें, गाल, कपड़े
होली पर पहने पुराने कपड़ों की
फटी हुई जेब में ठहरा वसंत का जादू

बड़े बाज़ार के अहाते
भरे हैं
सुगन्धित रंगों, डिजाईनर पिचकारियों, गुब्बारों और
हर्बल गुलाल से
पूरा बाज़ार बेच रहा है
इस होली पर
जीवन के रंग तरह तरह के ऑफर्स के साथ

भीड़ दौड़ रही है बेतहाशा
सेल के ख़त्म हो जाने की आशंका में

बाज़ार के दालान में
बतौर शो पीस छोड़ दिया गया
पलाश का एक पेड़
खड़ा है अकेला अपने रंग लिए
सार्थक हो सकने की प्रतीक्षा लिए

और क्यों नहीं होता
मुझे यकीन कि
भीड़ के बहाव को नकार
अपने माता पिता की उँगलियाँ छुड़ाकर
पीढीयों की सीढियाँ उतर
अभी दौड़ता हुआ आएगा
एक शिशु
और उठा लेगा
धरती पर पड़ा पलाश का एक फूल.

-परमेश्वर फुंकवाल
१७ मार्च २०१४

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