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होली है!!
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शान से फिर
आई होली |
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सात रंगी ओढ़ चुनरी, शान से फिर
आई होली।
प्रेम रस की गागरी ले, द्वार पर मुस्काई होली।
फागुनी मौसम के धरती से हुए अनुबंध भीगे,
सृष्टि का कण-कण भिगोकर, भर रही तरुणाई होली।
आँगनों में, शुभ-शगुन के, मनहरण सतिया सजे हैं,
खेत-खलिहानों, वनों, छत-छप्परों पर छाई होली।
खिल उठे तरु, पुष्प, पल्लव, खुशबू से गुलज़ार गुलशन
जलचरों को, थलचरों को, नभचरों को, भाई होली।
पिहु-पिहू रटते पपीहे, कुहु-कुहू कोकिल पुकारे,
क्यारियों, फुलवारियों, अमराइयों में गाई होली।
जलधि जल में, निर्झरों पर, पर्वतों पर, खाइयों में
पूर्णिमा की चंद्र किरणें, रच रहीं सुखदाई होली।
चार दिन की चाँदनी सब, सौंपकर उपहार हमको,
घूमकर आएगी फिर से, चार दिन हरजाई होली।
-कल्पना रामानी
१७ मार्च २०१४ |
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