१.
वो आए, खुशियाँ ले आए;
विरह-ताप क्षण माहि मिटाए ।
अपने रँग में रँग दे चोली,
ए सखि साजन ? ना रे, होली ।
२.
तन से मेरे लिपटा जाय ।
उससे बचना मुश्किल, हाय ।
लिपट बाल में, चूमे गाल ।
ए सखि साजन ? नहीं, गुलाल ।
पीयूष द्विवेदी भारत
१.
रँग में उसके भीगी जाऊँ
चाहूँ भी तो बच ना पाऊँ
तन-मन रचे प्रीत रंगोली
क्या सखि साजन? ना सखि होली |
२.
नेह रंग मुझ पर बरसाए
सकल बदन मन भीगा जाए
सींचे अंतर की फुलवारी
क्या सखि साजन ? ना पिचकारी |
राजेश कुमारी
१.
तन भीगे मन भीगा जाए
याद कभी जब उसकी आए
खुशियों की वो रचे रँगोली
ए सखि साजन ? ना सखि होली
२.
ऐसी महक कि मन भरमाय
मुख को वो जब भी सहलाय
तन-मन दोनो होय अधीर
ए सखि साजन ? नहीं अबीर
सुनील कुमार झा
१.
बेसब्री से बाट जोहती,
भाँति-भाँति तैयारी करती,
भाती उसकी हँसी-ठिठोली,
क्या सखि साजन ? ना सखि होली !
२.
मुझको वह मदमस्त बनाय,
तन-मन को भी वो बहकाय,
हिय में लाए अजब तरंग,
क्या सखि साजन ? ना री, भंग !
रश्मि प्रभा
१७ मार्च २०१४