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होली है!!
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रंगों का नव
पर्व वसंती |
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रंगों का
नव पर्व बसंती
सतरंगा आया
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया
आशा पंछी को खोजे से
ठौर नहीं मिलती.
महानगर में शिव-पूजन को
बौर नहीं मिलती
चकित अपर्णा देख, अपर्णा
है भू की काया
कागा-कोयल का अंतर अब
जाने कैसे कौन?
चित्र किताबों में देखें,
बोली अनुमानें मौन
भजन भुला कर डिस्को-गाना
मंदिर में गाया
है अबीर से उन्हें एलर्जी,
रंगों से है बैर
गले न लगते, हग करते हैं
मना जान की खैर
जड़ विहीन जड़-जीवन लखकर
'सलिल' मुस्कुराया
-आचार्य संजीव सलिल
२५ मार्च २०१३ |
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