अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

होली है!!


रंग लिये फागुन


आया फिर
आँगन में रंग लिए फागुन

टेसू हर डाल पर फगुआ सुनाये
पात-पात सुन-सुन के
झूम-झूम जाए

पंछी गुनगुनाने लगे
प्यार भरी धुन

राह तके बालम की रंग लिए गोरी
छोडूँ ना साजन को
खेलूँगी होरी

बजने बेचैन दिखी
पायल छुन-छुन

शिकवे सब, भूल चली मस्तों की टोली
हर दिल को रिझा रही
रंग भरी बोली

प्रीति में खो जाएँ,
आओ हम - तुम

- रोहित रूसिया
२५ मार्च २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter