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होली है!!


कैसे कैसे रंग


फागुन की
झोली से निकले कैसे कैसे रंग
लो भइया! फिर शुरू हो गयी
होली की हुड़दंग

यूँ बौराया
आम कि सारा मौसम बौराया
कोयल ऐसे कूकी सोया दर्द उभर आया
हवा चली मदभरी कि जैसे
पड़ी कुयें में भंग

जीजा–साली
देवर–भौजी जैसे रिश्ते हैं
हँसी–ठिठोली और नेह की बाकी किश्तें हैं
बिसर गया है बाबा को भी
कुछ दिन से सत्संग

नशा चढ़ा है
ऐसा, किसको रस्ता सूझेगा
किस पर किसका रंग चढ़ा है फागुन बूझेगा
कई नेह के अंकुर फूटे
लेकर नई उमंग

– रविशंकर "रवि" 
२५ मार्च २०१३

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