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होली है!!
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फागुन |
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पुनः
समय की आँखों में है
महुआया फागुन
पोर-पोर सरसों पियराई
खुशबू की काया अँगड़ाई
साँझ – सकारे
सगुन पखेरू
बाँच रहे निर्गुन
फिर फूले पलाश - वन दहके
बाग, बघारे, खेत, घर महके
बौरों का
पाहुर लेकर
आया मौसम पाहुन
है बरसात मदिर गंधों की
प्रेमगीत के स्वर-छंदों की
मन मे जमी
मैल धो देंगे
शब्दों के साबुन
-नचिकेता
२५ मार्च २०१३ |
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