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होली है!!


वो हल्का सा गुलाल


आँखों की
जलती बुझती रौशनी के बीच
कहीं
वो हल्का सा गुलाल-
क्षितिज के
मद्धम से अँधेरों को
अपने में समेटे
चाँद की पेशानी पर
चमचमाता अबीर बनकर
हर पूनम को सुलगता है।

आस लगाये बैठी हूँ
उस होली की सुबह का
जब ये चाँद पूनम से उतर कर
अमावस के गुलाल में
सितारे भरकर
मेरे मन के अंधेरों की पेशानी पर
इन्द्रधनुष सा
रौशन होगा।

मेरा जीवन
अँधेरों से बने उजालों के
एक अथाह सागर में
भीगा होगा।

-मीना चोपड़ा
२५ मार्च २०१३

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