होली में
अब होम दें, कलुषित सभी विचार ।
मन से मन सबके मिलें, होवे मुखरित प्यार ।।१।।
लो सतरंगी हो गया, मन भी तन के साथ।
कैसे जादूगर पिया, रंग लियो ना हाथ ।।२।।
बौराई रुत फाग सी, मैं भूली सब रीत।
ज्यों-ज्यों सिमटी आप में, त्यों-त्यों छलकी प्रीत।।३।।
गुँझिया से मीठे लगें, गोरी तेरे बोल।
गारी पिचकारी हुई, रंग माधुरी घोल।।४।।
कुछ भूलों को भूल कर, चलो मिला लें हाथ।
जीवन भर क्या कीजिये, नफ़रत लेकर साथ।।५।।
कहाँ सुहाए चंद्रिका, मन तो हुआ चकोर।
राधे सबसे पूछती, कित मेरो चितचोर ।।६।।
देख सयानी बेटियाँ, किसका रंग गुलाल।
कैसे पीले हाथ हों, सोचे दीन दयाल ।।७।।
डॉ.
ज्योत्सना शर्मा
२५ मार्च २०१३