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होली है!!


फागुन में


सडकों पर
बाजार सजे हैं फागुन में
बहुत दूर से तार बजे हैं
फागुन में।

खेतों में सरसों ने पीला रंग भरा
बौर आम की टहनी-टहनी पर उतरा
नीम झूमने लगी मस्त हो
फागुन में।

पीपल महुआ सभी
नहाकर निकले हैं
बूढे बरगद ने भी कपडे बदले हैं
कोयल का संगीत चल रहा
फागुन में।

रूप रंग से धरती जहाँ नहाती है
महानगर में याद गाँव की आती है
नया नहीं कुछ यहाँ
कहीं भी फागुन में।

-भारतेन्दु मिश्र
२५ मार्च २०१३

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