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होली है!!


पावन होली है


मेरे माथे पर उसके चुंबन की रोली है,
विश्वासों के वैभव की यह पावन होली है

एक पर्व है मुक्त हृदय की सूक्ष्म तरंगों का
होली संगम है रंगों का और उमंगों का
रिश्तों की पावन गरिमा के अनुशासन में भी
यह मन की अतृप्त चाह की कोमल बोली है

जात-पाँत और मित्र-शत्रु का मर्म नहीं होता
होली के रंगों का कोई धर्म नहीं होता
जिसकी आभा से आलोकित मन का हर कोना
उसकी तिरछी एक नज़र पर नीयत डोली है

फूलों के झुरमुट में उलझी सुबह-सुबह की धूप
हर चेहरा मन के उल्लासों का जैसे प्रतिरूप
हर विषाद को होली की लौ पर रख आया हूँ
विश्वासों ने उम्मीदों की खिड़की खोली है

उसके चेहरे के रंगों को जाँच रहा हूँ मैं
खामोशी के वृहत काव्य को बाँच रहा हूँ मैं
विचर रही हैं खजुराहो की छवियाँ सी मन मैं
आहिस्ता से कानों में एक कोयल बोली है

-अशोक रावत
२५ मार्च २०१३

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