अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है

 

गुलाल क्या करे

भीतर के रंग उड़ चुके, बाहर गुलाल क्या करे
मन में न हो मिठास तो मोदक का थाल क्या करे

भीगे नहीं है मन ही जो अनुराग की फुहार से
तन को भिगो के रंग में कोई धमाल क्या करे

थमतीं नहीं विस्फोट की आतंक की कराहटें
होली की मस्त टोलियाँ ढोलक की ताल क्या करे

मौसम ने जब से छीन ली आबो हवा ज़मीन की
फागुन का माह और ये फूलों की डाल क्या करे

प्रहलाद जल रहा है और होलिका महफूज़ है
विश्वास उठ गया है भक्त अब सवाल क्या करे

-संध्या सिंह
५ मार्च २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter