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होली है

 

फागुन आया

सखि !
फागुन आया पाहुन बन
कोयल गाये, बहकी डाली ,
उपवन मन गाया

आलसी के
फूलों से धरती
लहरों सी बहती अलबेली
नव यौवन में मत्त कामिनी
बलखाये उन्मुक्त अकेली
महुआ रस से बौरा भौंरा,
यौवन चख आया

खोयी है
राधा सपनों में
राग-रंग-रस-रास- ठिठोली
कान्हा छोड़ गए गोकुल क्यों
देह जलाती तुम बिन होली
उमगी राधा, कान्हा रंग में
डूबा घर आया


गली गली
में राधा मोहन
नहीं रहे वश में व्याकुल तन
लाज शर्म की घड़ी नहीं यह
प्रेम समर्पित जीवन यौवन
साँसों की डोरी से ऐ सखि!
साजन बँध पाया

रवीन्द्र कुमार दास
५ मार्च २०१२

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