रंगी अबीर-
गुलाल
केसरी पाती पहुँचाए
द्वार बहुरिया देख ! रँगीले फागुन जी आए
अँगना दिया बुहार
चली रँगने कंगूरे
भूल सजन का काज
भली फागुन को घूरे
पीत चुनरिया संग फागुन जी फगवे में लाए
कँगने कान, कमरिया
देखो डाल चली गलहार
भूल गई हुरवे होली के
गाती फिरे मल्हार
ददियासास बरजती वा को बार बार समझाए
झम-झम बोलें हाथ मंजीरे
ढोलकिया ढम-ढम
रचा महावर अंग–अंग में
पेंजनिया छम-छम
सात रंग में रंगे कलावे द्वारे पर लटकाए
प्रवीण पंडित
५ मार्च २०१२