होली है
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रंग हजारों
मिलते जुलते |
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रंग हजारों मिलते जुलते
हर चेहरा है खोया खोया
आज धरा
कंचन बरसाए
फाग चढा, महुआ बौराए
पर जग की ये रीत हुई है
अपने अपनों से कतराए
अनजाने रंगों ने मिलकर
भेद भुलाए,
मन को धोया
अम्बुआ फूला,
टेसू चमका
गुलमोहर है दमका दमका
बाग खिला है रंग रंगीला
भँवरा भी है बहका बहका
हुआ अचम्भा धरती को भी
यह सब कब
माली ने बोया
भीगा भीगा
तन है प्यासा
धधक रही है गहन पिपासा
पर बिन कान्हा के ना तरसे
अमृत राधा के हिय बरसे
तनतृष्णा को छोड़ प्रेम ने
मन मनके में
धागा पोया
मौन पड़ी थी
जो अंगडाई
कोयल के गीतों ने गाई
लाज ने सारे बंधन तोड़े
सृष्टि यौवन से गदराई
ढोल मँजीरे शगुन ला रहे
जाग उठा
वैरागी सोयापरमेश्वर
फुँकवाल
५ मार्च २०१२ |
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