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होली है

 

छंद फागुनी

भीजति है सखि रीझति है,
पुनि नैनन बान चलावति राधा।
लाल गुलाल लगावति गालन,
हाल बेहाल बनावति राधा।
रंग हि रंग में अंग तरंग में
भीजि के भेद भुलावति राधा।
चंचल चोर बनी मन मोर,
घटा घनघोर बुलावति राधा।

रंग में भीजि तरंग में भीजि,
उमंग में भीजि के आयो बिहारी।
लाल गुलाल अबीर मल्यो मुख,
रंग कि डारि गयो पिचकारी।
चूनर फारि कै बात बिगारि कै,
आँगन बीच सुना गयो गारी।
हाल बिहाल निहाल करी सखि,
या बिधि तैं बृषभानु दुलारी।

दोष कछू नहिं श्याम को री सखि,
श्याम छटा ने सबै द्दल कीन्हां।
नूपुर पायन कंकण किंकिणि,
मोर पखा सिर ऊपर दीन्हां।
रंग हि रंग में अंग तरंग,
मनू सब इन्द्र धनू धरि लीन्हां।
रूप अरूप को ढूढें कहाँ अलि,
रूप कि धूप ने चैन हि छीना।

-निर्मला जोशी 
५ मार्च २०१२

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