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होली है

 

सगुन पांखी लौट आए

कौन सा मै गीत गाऊँ
जो तुम्हारा मन लुभाए

आ गए
मधुमास के दिन
हास के परिहास के दिन
शीत ने चादर समेटी फागुनी उल्लास के दिन
रात फिर सपने उकेरे चांदनी
भी
गुनगुनाए

कोकिला की
तान से वातावरण रस रागमय है
स्वरों की बहती नदी की हर लहर में एक लय है
कुछ कहे, कुछ अनकहे मृदुगीत जीवन
के सुनाए

कल्पना की
देहरी पर सजी साधों की रंगोली
दूर थापें मादलों की कह रही हैं आई होली
क्षितिज पर फिर रंग बिखरे सगुन पांखी
लौट आए

- डॉ मधु प्रधान
५ मार्च २०१२

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