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होली है

 

रंग गुलालों वाला मौसम

रंग - गुलालों - वाला मौसम
कोई मेरा गाल छू गया
खुली चोंच से
जैसे कोई पंछी
मीठा ताल छू गया

दूर हुई
तनहाई मन की
हम भी खिलने लगे फूल से
हुए डहेलिया
और मोगरे कल तक
थे जो दिन बबूल से
एक हवा का
झोंका आया
मुझे रेशमी बाल छू गया

जाने क्या
हो गया चैत में
लगी देह परछाई बोने
पीले हाथ
लजाती ऑंखें
भरे दही गुड़ पत्तल -दोने
सागर
खोया था लहरों में
एक अपरिचित पाल छू गया

छन्द प्रेम के
रंग भींगते
एक गीत के माने कितने ,
इस मौसम में
लिखना मुश्किल
हैं गोकुल, बरसाने कितने
होरी गाना
मैं भी भूला
जाने कब करताल छू गया

हुआ साँवला
रंग सुनहरा
देह कटार, नयन में सपने
कामरूप का
जादू -टोना
इस मौसम में सब हैं अपने
कविता को
वनलता सेन का
हरा-भरा बंगाल छू गया

- जयकृष्ण राय तुषार
५ मार्च २०१२

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