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होली है!!

 

फागुन वाले देश

लौट पाँव ऋतुराज के, रही होलिका पूज
बँसवारी के अधर से उठी वेणु की गूँज

खुल खुल जाए कंचुकी, कर मन को बेईमान
दर्पण की सुधियाँ हुईं सारी आज जवान

सजी दुकानें प्रीत की, मन वाले बाजार
मोल भाव करने लगे फागुन के मनुहार

गगन धरा को दे गया, सपनों की सौगात
चम्पा की क्यारी झरे महुआ सारी रात

धवल रेणुवसना नियति, पर दृग सपने पाल
अलसाए तटबन्ध में नदिया पड़ी निढाल

सौरभ वर्णी पत्र पर, पाहुन के संदेह
पछुवा की छुवनें पढ़ें फागुन वाले देश

लगे धसकने टूटकर रंगों जड़े पहाड़
तिल भर के रिश्ते हुए खुसर पुसर से ताड़

अपने सपनों से जुड़ा एक मदिर अनुबंध
बिगड़े मादक देह से आँचल के संबंध

शिवाकांत मिश्र विद्रोही
१२ मार्च २०१२

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