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होली है!!

 

होली में हुरिया रहे

होली होली हो रही, होगी बारम्बार।
होली हो अबकी बरस, जीवन का शृंगार

होली में हुरिया रहे, खीसें रहे निपोर।
गौरी-गौरा एक रंग, थामे जीवन डोर

होली अवध किशोर की, बिना सिया है सून।
जन प्रतिनिधि की चूक से, आशाओं का खून

होली में बृजराज को, राधा आयीं याद
कहें रुक्मिणी से -'नहीं, अब गुझियों में स्वाद'

होली में कैसे डले, गुप्त चित्र पर रंग
चित्रगुप्त की चातुरी, देख रहे सबरंग

होली पर हर रंग का, 'उतर गया है रंग'
जामवंत पर पड़ हुए, सभी रंग बदरंग

होली में हनुमान को, कहें रँगेगा कौन
लाल-लाल मुँह देखकर, सभी रह गए मौन

होली में गणपति हुए, भाँग चढ़ाकर मस्त
डाल रहे रँग सूँड़ से, रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त

होली में श्री हरि धरे, दिव्य मोहिनी रूप
कलशा ले ठंडाइ का, भागे दूर अनूप

होली में निर्द्वंद हैं, काली जी सब दूर
जिससे होली मिलें, हो, वह चेहरा बेनूर

होली मिलने चल पड़े, जब नरसिंह भगवान्
ठाले बैठे मुसीबत, गले पड़े श्रीमान

आचार्य संजीव वर्मा सलिल
१२ मार्च २०१२

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