होली है!!
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ओ री हो री
होरियाँ |
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शिशिर जाय सिहराय के, आये कन्त
बसन्त
अंग-अंग घूमे विकल, सेवक स्वामी सन्त
मादक अमराई मुकुल, बढ़ी आम की चोप
अंग-अंग हों तरबतर, गोप गोपियाँ ओप
जड़-चेतन बौरा रहे, खोरी के दो छोर
पी पी पगली पीवरी, देती बाँह मरोर
सर्षप पी ली मालती, ली ली लक्त लसोड़
कृष्ण-नाग हित नाचती, सके लाल-सा गोड़
ओ री हो री होरियाँ, चौराहों पर साज
ताकें गोरी छोरियाँ, अघी अभय अंदाज
रविकर
१२ मार्च २०१२ |
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