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फागुन लाया प्रेम की, सतरंगी बौछार,
मिलकर आज मनाइए, होली का त्यौहार
कली खिली कचनार की, सुन फागुन का राग
आम्र बौर बौरा गए, लगे सुनाने फाग
होली के हुड़दंग से, उड़ी धूल ही धूल
रंग खेलने आ गए, टेसू के ये फूल
गुब्बारों की मार से, ऐसी मची धमाल
उड़े हास्य के बुलबुले, हाल हुए बेहाल।
नए नज़ारे रंग के, नए नए अंदाज़
निकल चलो मैदान में, बुला रहा ऋतुराज
सरसों फूली देखकर, खुश हो रहे किसान
होली मिलने चल पड़े, पूर्ण हुए अरमान
मिलन सभाएँ सज गईं, बाजे ढोल मृदंग
सभी थिरकने लग गए, पीकर केसर भंग
कल्पना रामानी
१२ मार्च २०१२ |