होली है
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खिली फागुनी
धूप |
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भंग चढ़ाकर आ गई, खिली फागुनी
धूप ।
कभी हँसे दिल खोलकर, कभी बिगारे रूप।।
धानी-पीली ओढनी, ओढ धरा मुस्काय ।
सातों रंग बिखेर कर, सूरज भागा जाय ।।
सतरंगी किरने रचें, मिलकर उजली धूप।
होली का सद्भाव दे, जग को उज्ज्वल रूप।।
कितना छिपकर आइये, गोप गोपियों संग ।
राधे से छुपते नहि, कान्हा तोरे रंग ।।
हुई बावरी चहुँ दिशा, मस्ती बरसे रंग।
बाल, वृद्ध नर नार सब, जन-मन सरसे संग।।
-ज्योत्सना शर्मा
५ मार्च २०१२ |
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