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होली है

 

जंगल में टेसू खिले

फागुन आया हाथ में लेकर रंग गुलाल
देख कनखियों से कली हुई शर्म से लाल

मधुऋतु की पायल बजी, चहका सारा ग्राम
लिखी हवा ने प्यार की चिट्ठी सबके नाम

मन की सब गाँठें खुलीं टूटे सब तटबंध
पोर पोर पर लिख गया, फागुन नेह निबंध

जगर मगर होने लगी आँखों की चौपाल
तोड़ मौन की साँकलें शब्द हुए वाचाल

काजल आँजे आँख में रचे महावर पाँव
याद किसी की आ गई मेरे दिल के गाँव

तितली की अठखेलियाँ मृदुबयनी के गीत
मधुऋतु में किस काम के बिना तुम्हारे मीत

झाँक कनखियों से गई खिड़की की मुस्कान
जानबूझ कर बन गईं दीवारें अनजान

पशु पक्षी उपवन पवन राजा रंक फकीर
मधुऋतु सबको दे गई खुशबू की जागीर

फागुन के सिर देखकर बँधा प्रकृति का ताज
आपे से बाहर हुआ सूरज तुनक मिजाज

ऱँगें प्यार के रंग में मन के सभी मलाल
अबके होली में चलो ऐसा मलें गुलाल

- जय चक्रवर्ती
१२ मार्च २०१२

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