मौसम की बदमाशियाँ टेसू का उत्पात
रोज़ विरह की आग में जलता गोरा गात।
पोर-पोर में बस रही सिर्फ़ यही एक आस
पिया बुझाने आएगा तन की मन की प्यास
तन टेसू का पेड़ है होंठ तुम्हारे फूल
इस वासंती रूप को कौन सके है भूल
रात ऋचाएँ बाँचती दिन खुशबू का दास
अंगों में फिर से जगी आलिंगन की प्यास
केशर फूले बाग में मन में महके याद
इच्छाएँ उकसा गए ये फागुन जल्लाद
तन पलाश-सा खिल उठा औ मन हुआ मयूर
जब से सूनी माँग में पिया बने सिंदूर
फागुन में संग गा उठे ढोलक चंग मंजीर
साजन अपना सूरमा हम उसकी जागीर
गोविंद अनुज
१२ मार्च २०१२
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