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सभी केमिकल, कीच का, बढ़ने लगा रुआब
होली के हुड़दंग का, क्या कहना है साब
अबकी बार चुनाव में, हुआ है ऐसा पोल
नेता जी के नाम का, बजने लग गया ढोल
तारकोल,कीचड़ सने, चेहरे, रूप, कुरूप
होली में सब एक से, रंक, भिखारी, भूप
होली के हुड़दंग में , रंग गए यूँ फैल
ज्यों-ज्यों हम घिसते गए, त्यों-त्यों बाढ़ा मैल
होली में हम प्रेम का, ऐसा खेलें रंग
चढ़े तो फिर उतरे नहीं, मारे प्रबल तरंग
गंगाप्रसाद शर्मा
१२ मार्च २०१२ |