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होली है!!

 

ऐसी होली खेलिये

गोरे गोरे अंग पै, चटख चढि गये रंग।
रंगीले आँचर उडैं, जैसें नवल पतंग

लाल हरे पीले रँगे, रँगे अंग-प्रत्यंग।
कज्जल-गिरि सी कामिनी, चढौ न कोऊ रंग

भरि पिचकारी सखी पर, वे रँग-बान चलायँ
लौटें नैनन बान भय, स्वयं सखा रँगि जायँ

भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय
पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रँगि जाय

भक्ति ग्यान औ प्रेम की, मन में उठै तरंग
कर्म भरी पिचकारि ते, रस भीजै अंग-अंग

ऐसी होली खेलिये, जरै त्रिविधि संताप
परमानन्द प्रतीति हो, ह्रदय बसें प्रभु आप

डा. श्याम गुप्त
१२ मार्च २०१२

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