होली है
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जंगल में
टेसू खिले |
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नव चेतना नव स्फूर्ति, मन में नई
उमंग।
वृद्ध हुआ हेमन्त तब, लाया साथ वसन्त।।
ऋतु वसन्त में चहुँदिसि, आया फागुन झूम।
प्रीत राग अलाप रहे, भँवरे उपवन घूम।।
डाल-डाल पर छा गया, अब वासन्ती रंग।
मानो पवन बाँट रहा, नूतन प्रणय प्रसंग।।
फिर से तरुवर सज गए, लिए सलोने गात।
लिपटी द्रुम से लता फिर, लेकर अल्हड़ गात।।
जंगल में टेसू खिले, आते ही मधुमास।
लगी हुलसने विरहिणी, देख पिया को पास।।
नव पल्लव द्रुमदल सजे, कली-कली सुकुमार।
ऋतु वसन्त में लग रही, भली-भली हर नार।।
अंग-अंग है पूछता, ले कर मीठी आस।
न जाने कब टूटेगा, तन-मन का उपवास।।
गली गली व नगर-नगर, उड़ा अबीर गुलाल।
दीख रहे सब के वदन, नीले, पीले लाल।।
स्वागत में ऋतुराज के, नाच पिया के संग।
भूत भविष्यत भूल कर, चढ़ी नेह की भंग।।
कानों में जब पड़ गए, मदन प्रीत के छंद।
गाल गुलाबी हो गए, पलकें हो गईं बंद।।
-धमयंत्र चौहान
५ मार्च २०१२ |
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