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(एक)
मग आज अचानक भेंट भई, दुहुँ दैन चहौ इक एक कों
चुक्का।
इत 'प्रीतम' प्यारे नें बाँह गही, उत प्यारी ने मारौ अबीर को बुक्का।
कर छाँडि तबै दृग मींजें लगे, यों लगाय कें आपुन तीर पे तुक्का।
अलि गाल मसोस गई मुसुकाय, जमाय कें पीठ पे एक हि मुक्का।।
(दो)
आई हों दीठि बचाय सबै, बिन तेरे हहा मोहि चैन
न आवै।
बेगि करौ जु करौ सु करौ, कर कें निबरौ तन मैन सतावै।
पै इक बात सुनो कवि 'प्रीतम' प्यार में ख्वार की दैन न भावै।
होरी खिलाहु तौ ऐसें खिलाहु क़ि मोसों कौउ कछु कैन न पावै।।
- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी प्रीतम
१४ मार्च २०११ |