अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है!!

 

और करो बौछार


और मुझे दो रस थोड़ा
अभी इसमें मधुरा
कम है

और कभी ललाई दो
और तनिक दो तो तीव्र
और बढ़ाओ आंच कि यह
जीवन जल
उबला कम है

और करो बौछार रंगों की
और मलो अबीर बदन पर
कह सकें सभी है तो यह रंगदार
भले साफ
उजला कम है

यह जल का ही चमत्कार
या यह है ही प्यास अजब

यह हर पल
बढ़ती जाती
वह जितना
उतना कम है।
यह उत्सव
यह रंगों का जीवन
जीवन का यह त्यौहार
यह उत्सव इस बरस भी आया
याद दिलाने फिर इस बार

तह पर जैसे तहें जमीं
परतों पर हो परत जमीं
उन यादों पर जम जायेगी
इस पल की भी याद अभी

फिर खुरचेंगे बरस बैठ कर
वह हलवे का थाल बड़ा
उसी याद की पुस्तक पढ़
बीतेगा यह साल बड़ा

जैसे पिछले बीते थे
वैसे ही अब यह आया
न होती जो यह होली
पता न चलता यह आया

रंग दंग हुड़दंग संग
नित मस्ती में बीते साल
फिर उमंग की बही शुरु
यह बड़े लाभ का कारोबार।

-सुधीर मोता
२१ मार्च २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter