होली है!!
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साजन बिना
बहार |
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साजन बिना बहार सखी री
सिसके पनघट,
द्वार सखी री
कुसमित डाली
मन मुरझाए
स्नेह पखेरू उड़ उड़ जा
फागुन रंगे,
बसंत नहाए
मन कोरा कोरा रह जाए
कहाँ लिखूँ अरमान सखी री
क्या सरहद
पर मेघा छाए ?
सुरभित हवा, उन्हें भरमाए ?
मन की डाली
खिल-खिल जाए
प्रेम पाश बँध साजन आएँ
ऐसी बहे बयार सखी री
कैसी होली
फागुन कैसा
बिना आग के चूल्हे जैसा
निकल रही
रंगों की टोली
उन बिन मेरी हो ली होली
चुभे अबीर गुलाल सखी री
साजन बिना बहार सखी री
--रचना श्रीवास्तव
१४ मार्च २०११ |
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