होली है!!
|
|
अंतर्मन रंग
आया |
|
|
रंग अंतर में बरस रहा है
अंतर्मन रंग आया
श्वेत चुनरिया देखो कैसी
सतरंगी हो आयी,
गोरे गोरे गाल गाल पर प्रेम की लाली छायी,
ये कैसा रंगरेज है जिसने
प्रेम का रंग लगाया
ढोल- धपाले गाजे - बाजे
सब ही तो बजते हैं,
तुम बिन मीते! कब जाकर ये अंतर्मन सजते हैं ,
हर पल बरसे नयनों में ये
कैसा रंग भराया
कितने रंग में महकी माटी
कितने सुमन खिलाये,
प्रेम रंग एक ऐसा जिसमें हर एक रंग मिलाये,
देख रंगों का रूप अनोखा
मन मेरा भर आया
--गीता पंडित
१४ मार्च २०११ |
|
|
|