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होली है!!

 

होली ने भी रंग बदला है

प्रतिपल बदल रही दुनिया में
होली ने भी रंग बदला है

पेड़, प्लास्टिक, टायर, छप्पर
जलें, बुराई ना जलती है
मन रँगती थी जो पिचकारी
अब वह तन दूषित करती है
जहर प्रदूषण का तन मन पर
कैंसर के समान फैला है

मिट्टी की प्यारी रंगत अब
काम-कीच से दबी हुई है
घर की मुर्गी जाँ देकर भी
शुष्क दाल सी बनी हुई है
धोते धोते काम कीच रंग
गंगाजल भी अब गँदला है

महल-झोपड़ी, भगवा-हरा,
जवानी-जरा मिला दें अबकी
भस्म बुराई कर अच्छाई से
हम हाथ मिला लें अबकी
सबमें हैं प्रह्लाद होलिका
अबकी देखें कौन जला है

--धर्मेन्द्र कुमार सिंह
१४ मार्च २०११

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