मातृभाषा के प्रति


हिंदी पर कुंडलियाँ

1

धारा है इतिहास की, है संस्कृति का केतु
गढ़ती है हिंदी सबल, मन से मन का सेतु
मन से मन का सेतु, प्राण से प्राण जुड़ाए
उत्तर-दक्षिण जोड़े, पश्चिम-पूर्व मिलाए
रिश्तों में रस घोल, बनाए उनको प्यारा
साथ निभाए जन्म, जन्म बन जीवन-धारा

2

ढोला की मृदु तान है, आह्रा की टंकार
फागुन में फगुवा यही, सावन मधुर मल्हार
सावन मधुर मल्हार, गूँजती हर दिन हर पल
माँ की लोरी यही, दहकते मन की हलचल
विरहा की वेदना, मान का है अनबोला
पद्मावति का रत्न, यही मारू का ढोला

3

राम कथा चौपाल की, अगिहाने की गप्प
बने किरण जब जगत में, घिरे अँधेरा घुप्प
घिरे अँधेरा घुप्प, गाँव का प्यारा पनघट
यही सास का प्यार, बहू का लंबा घूँघट
मुहावरे लोकोवित, जीवन के सुर ताल की
हिंदी है हर गाँव, राम कथा चौपाल की

4

रासो की टंकार है, आल्हा की हुंकार
सूर-सिंधु क गहनता, भूषण की ललकार
भूषण की ललकार, संत की उजली चादर
भक्तों की है भक्ति, मधुरता की रस सागर
घनानंद की पीर अमर, न दिवस मासों की
सेनापति का शान, गूँजती ध्वनि रासो की

5

छायावादी कंठ का, गूँजा अंतर्नाद
महादेवी की वेदना, दिव्य अलौकिक स्वाद
दिव्य अलौकिक स्वाद, हुई वाणी रसवंती
पंत प्रकृति के गूँजे, स्वर मोहक वासंती
नव्य निराला स्वर, गूँजा बनकर उन्मादी
दिव्य प्रसाद दे रही, हिंदी छायावादी

डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर'
16 सितंबर 2007

 

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