मातृभाषा के प्रति


तीन व्यंग्य रचनाएँ

हिन्दी पखवाडा

साहब ने-
चपरासी को
हिन्दी में फटकारा
’हिन्दी-स्टेनो’ को
पुचकारा
और-कलर्क को
अँग्रेजी टिप्पणी के लिए
लताड़ा
क्या करें ?
मजबूरी है-
वो आजकल मना रहे हॆं
’हिन्दी-पखवाडा’.

अंग्रेज चले गये ?

’अंग्रेज चले गये’
’अब हम आजाद हॆं’
-दादाजी ने कहा
-पिता ने भी कहा
- मां ने समझाया
- भाई ने फटकारा
लेकिन वह-
चुप रहा।
दादाजी ने-
घर पर
दिन-भर
अँग्रेजी का अखबार पढा।
पिता ने-
दफ्तर में चपरासी को
अंग्रेजी में फटकारा।
मां ने-
स्कूल में भारत का इतिहास
अँग्रेजी में पढाया।
भाई ने-
खादी-भंडार के
उदघाटन-समारोह में
विलायती सूट पहनकर
खादी का महत्व समझाया।
और-उसने कहा-’थू’
सब बकवास है।

राजमाता ’हिन्दी’ की सवारी

होशियार ! खबरदार !!
आ रहे हॆं
राजमाता ’हिन्दी’ के शुभचिंतक
मैडम ’अंग्रेजी’ के पहरेदार !
हर वर्ष की भांति
इस बार भी
ठीक १४ सितंबर को
राजमाता हिन्दी की सवारी
धूम-धाम से निकाली जायेगी
कुछ अँग्रेज-भक्त अफसरों की टोली
’हिन्दी-राग’ गायेगी।
रबारियों से है अनुरोध
उस दिन ’सेंडविच’ या ’हाट-डाग’
राजदरबार में लेकर न आयें।
’खीर-पकवान’ या ’रस-मलाई’ जैसी
भारतीय स्वीट-डिश ही खायें।
आम जनता
खबरदार !
वैसे तो हमने
चप्पे-चप्पे पर
बै
ठा रखे हॆं-पहरेदार ।
फिर भी-
हो सकता है
कोई सिरफिरा
उस दिन
अपने आप को
’हिन्दी-भक्त’ बताये
हमारे निस्वार्थ ’हिन्दी-प्रेम’ को
छल-प्रपंच या ढकोसला बताये।
कृपया-
ऐसी अनावश्यक बातों पर
अपने कान न लगाएँ
भूखे आएँ-
नंगे आएँ-
आँखों वाले अंधे आएँ
राजमाता ’हिन्दी’ का

गुणगान गाएँ।
 

--विनोद पाराशर
१२ सितंबर २०११

 

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