मातृभाषा के प्रति


सखी सहेली हिंदी

माँ की गोदी ममता पाई, तेरी गोदी वाणी
सखी सहेली हिंदी तूने बात कभी यह जानी ?

अधरों पे आ बैठे तू ही
बोल अबोले बोले
गीतों की लड़ियों में तू ही
मधुर–मधुर रस घोले
तेरा मेरा नाता जैसे
बदली में हो पानी

मानस के कागद पर हर पल
तू ही आखर लिखती
भाव मुखर हो जाते जब तू
अँगुली आन पकडती
मन मंदिर में वास तुम्हारा
देवी तू कल्याणी

अमित अपरिमित कोष तुम्हारा
दिन–दिन बढ़ता जाए
नित नूतन कोई बोली भाषा
तुझमें आन समाए
सारे जग में हिंदी तेरा
मिले न कोई सानी

शशि पाधा
१२ सितंबर २०११

 

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