मातृभाषा के प्रति


भाषा वंदना

साँसों की है साज यह आँखों की है लाज
तन मन से वंदन करें निज भाषा का आज।

माता की ममता यही निर्मल गंगा नीर
इसका अर्चन कर गए तुलसी सूर कबीर।

बचपन की तुतलाहटें यौवन के मधु गीत
चौथे पन की शांति है जन्म मरण की मीत।

यह अतीत का गर्व है है भविष्य की आस
वर्तमान का रूप है नित्य प्राण के पास।

यही शब्द का स्पर्श है यही रूप की धूप
यही सुमन की गंध है रस की धार अनूप।

जन-जन की संकल्प यह जन-जन की अभिलाष
तिमिर तोम में त्रासदी अंतर्बाह्य प्रकाश।

जननी के आशीष-सी धरे शीष पर हाथ
धड़कन धड़कन में बसी साँस साँस में साथ।

--निर्मला जोशी
१४ सितंबर २००९

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter