भाषा वंदना
साँसों की है साज यह आँखों की है लाज
तन मन से वंदन करें निज भाषा का आज।
माता की ममता यही निर्मल गंगा नीर
इसका अर्चन कर गए तुलसी सूर कबीर।
बचपन की तुतलाहटें यौवन के मधु गीत
चौथे पन की शांति है जन्म मरण की मीत।
यह अतीत का गर्व है है भविष्य की आस
वर्तमान का रूप है नित्य प्राण के पास।
यही शब्द का स्पर्श है यही रूप की धूप
यही सुमन की गंध है रस की धार अनूप।
जन-जन की संकल्प यह जन-जन की अभिलाष
तिमिर तोम में त्रासदी अंतर्बाह्य प्रकाश।
जननी के आशीष-सी धरे शीष पर हाथ
धड़कन धड़कन में बसी साँस साँस में साथ।
--निर्मला जोशी
१४ सितंबर २००९ |